Post of 22 September 2023
द्वितीय विश्वयुद्ध (WWII) के बात अरब-इस्राईल युद्ध (अप्रैल 1973) एक ऐतिहासिक युद्ध था जिस ने 1878 के बाद यूरोपियन साम्राज्य द्वारा मिडिल ईस्ट, अफ़्रीका के लूट और बर्बादी को रोकना शुरू किया।1973 के “योम किपूर युद्ध” के बाद मिडिल ईस्ट ने तेल को पश्चिमी साम्राज्य के खेलाफ एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना शुरू किया और पिछले पचास (50) साल मे हर छः महीना बाद 62 बार तेल का दाम 30% बढ़ा कर पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्था पर ब्रेक लगाता रहा।
इसी तेल के पैसा से पश्चिमी देशों से हथियार ख़रीद कर 1989 मे सोवियत संघ को अफ़ग़ानिस्तान में हरा कर सेंट्रल एशिया के मुस्लिम देशों को आज़ाद कराया, जिस का आख़री दृश्य दो दिन पहले अज़रबाइजान और नगोरनो काराबाख में हम लोगों ने देखा।अब फ़्रांस या यूरोप-अमेरिका चाह कर भी अज़रबाइजान के खिलाफ नहीं जाये गा क्योंकि उन को अज़रबाइजान का तेल और गैस अपनी अर्थव्यवस्था के लिए चाहिये।
यह पुस्तक “The rise and fall of the great powers” 1991 में प्रकाशित हुई थी, जब मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ को भंग कर रहे थे और मॉस्को का पतन हो गया था, भारत में बाबरी मस्जिद शहीद करने का आंदोलन पूरे भारत मे दंगा करा रहा था, अमेरिकी नेतृत्व वाले गठबंधन ने खाड़ी युद्ध में सद्दाम हुसैन की सेनाओं को कुवैत से निकाल दिया था, जापान का 30 साल का आर्थिक तरक़्क़ी रुक गया।
अमेरिका की “एकध्रुवीय शक्ति” मिडिल ईस्ट और अफ़्रीका में खुले आम आतंकवादी को बढ़ावा देता गया और जेहादिष्ठ, इसलामिस्ट कह कर बमबारी करता है।इसी बीच चीन आर्थिक ताक़त हो गया और आर्थिक शक्ति का बडा हिस्सा अपनी सेना पर खर्च करता रहा और अब अपने पड़ोसी भारत और अमेरिकी को धमका रहा है।
सोवियत संघ को विघटित हुए काफी समय हो गया है और अफ़ग़ानिस्तान में 20 साल लंबा युद्ध “फ़ॉल ऑफ काबूल” के बाद लुप्त हो रहा है और सैन्य पाठ्यपुस्तकों में एक ऐतिहासिक केस स्टडी बन गया है।
दुनिया के दूर-दराज के क्षेत्रों में अमेरिकी रणनीतिक हित का 90 साल का विस्तार खत्म हो गया।मिडिल ईस्ट और चीन की आर्थिक ताक़त ने भू-राजनीतिक को 1878 के बाद बदल दिया।सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान Fox News को साक्षात्कार मे कहते हैं, “अगर ईरान को परमाणु हथियार दुनिया देती है तो सऊदी अरब को भी परमाणु हथियार देना चाहिये।”
#नोट: मगर भारत को अभी भी 30 साल के बदले अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य न दिख रहा है और न समझ में आ रहा है, वह अपनी सौ साल की सोंच लेकर अभी भी अमेरिका और यूरोप का तुष्टिकरण कर रहा और मुस्लिम का तिरस्कार कर रहा है।