Post of 17th August 2021
भारत मे उर्दु-हिन्दी नाम वाले लोगो का Binary Arguments तालेबान के काबूल फ़तह पर दो दिन से सोशल मिडिया मे बहुत देखने को मिल रहा है।कोई इस को इस्लामी नज़रिये से देख रहा है और खुश हो रहा है मगर कुछ लोग मुस्लिम आतंकवाद लिख कर छाती पिट रहे हैं।कोई गैर-इस्लामी नज़रिये से देख कर औरतों की आजादी का नरसंहार लिख रहा है।
पिछले चालीस साल से, 1977 जनता पार्टी के मिली जूली सरकार के बाद देश मे बाइनरी नज़रिये का ज़हर देश के बूद्धिजिवी, नेता, पुलिस, मिडिया मे घोल कर धिरे-धिरे समाज मे फैलाया गया और बहुत ब्रेन ड्रेन हुआ।आज बाइनरी नज़रिया के कारण आजादी के 75वे साल देश बत्तरीन आर्थीक बरबादी और सीमा पर अशांति के दौर से गुजर रहा है। तीस साल मे चीन और रूस सुपर पावर हो गया मगर हम लोग भारत माता की जय और विश्व गुरू का झूठा नारा ही लगाते रहे।
यह जो 15 अगस्त को काबूल मे हुआ है यह एक यादगार एतिहासिक घटना घटी है। यह पश्चिम देशों और अमेरिका के सैन्य शक्ति, राजनीतिक और विदेशनीति का जनाज़ा निकला है।काबूल मे जनाज़ा निकलने पर पश्चिम देशो के बूद्धिजिवी टीवी पर रो रहे हैं। इसे ख़ुशक़िस्मती या बदक़िस्मती कहिये मगर यह “अफ़ग़ानी” और “तालेबान” के हाथों हुआ है।
संघीतिकर्ण के नीति के संचालक, संघीतकारो के सर्वेसर्वा से अनुरोध है कि वह देश बचाने के लिये अपने सौ साल के सोंच को बदलें और संस्था का पूनर्गठन करें।पंडित नेहरू देशभाक्त और राष्ट्रवादी थे, वह बेवक़ूफ़ नही थे जो मौलाना आज़ाद और रफ़ी अहमद किदवई को साथ लेकर चले और देश की शिक्षानीति और कृषि नीति बनवाई, जिस का आज तक देश मे यादगार बाक़ी है।