Post of 12th April 2022
हम हमेशा लिखते हैं कि सोवियत संघ का 1990 मे पूर-अमन/ शांतिपूर्वक टूटना एक सानेहा है, जो 20 वी सदी मे किसी ने भी नही सोंचा था।
ब्रिटिश, स्पैनिश, पोरटोग़िज, फ्रेंच सभी साम्राज्य मार काट और दो विश्वयुद्ध के बाद तीस-चालीस साल मे करोड़ों जान जाने के बाद ख़त्म हुआ मगर रूस के साम्राज्य को अफगानिस्तान ने सिर्फ दस साल मे तोड दिया।10-12 मूल्क बेगैर ख़ून ख़राबे के आज़ाद हो गये जिस मे यूक्रेन भी था।
यूक्रेन औटोमन सल्तनत का हिस्सा रहा है इस वजह कर वहॉ आज भी तुर्कीश और फारसी नाम के शहर और दो सौ साल पूराने विश्वविद्यालय हैं और मेडिकल कालेज वगैरह हैं।यूक्रेन रूस से अलग होने पर यूरोप मे एक अलग पहचान बनाना चाहता था।
मगर ओबामा-बाईडेन ने “अरब स्प्रिंग” के तरह 2013 नवंबर मे यूक्रेन मे “मैदान रिवोलूशन” नाम से किव मे आंदोलन शुरू करवाया जिस मे रूस-नवाज़ हकूमत का अन्त हुआ और नई यूरोप समर्थक सरकार बनी।मगर बदले मे रूस ने 2014 मई मे क्रिमिया कब्जा कर लिया।ओबामा मूँह देखते रह गये और उप-राषट्रपति बाईडेन को यूक्रेन आँसू पोंछने को भेजा। (मैदान फारसी लव्ज है जो चौड़ी खूली जगह को यूक्रेन मे भी बोला जाता है)
2021 मे बाईडेन ने आकर फिर यहॉ रूस के खेलाफ ज़ेलेंसकी से मिल कर साजिश कर यूक्रेन को रूस से लडवा दिया। ज़लेंसकी जानते थे कि रूस के गैस/तेल/कोयला के वजह यूरोप उन का साथ नही दे गा और यूरोप मे नया इस्राईल भी नही बनने दे गा।
इस वजह कर ज़ेलेंसकी 10 अप्रील 2021 अरदोगान से जाकर मद्द माँगने लगे कि रूस से बचा लें। मगर 15 अगस्त को फॉल आफ काबूल मे बाईडेन (अमेरिका) की शिकस्त देख कर रूस फरवरी मे यूक्रेन मे कूद गया।अब यह लडाई “बाईडेन की लडाई” हो गई जिस मे दुनिया की बहुत सारे छोटे-बडे देश की अर्थव्यवस्था बरबाद होगी और आख़ीर मे अमेरिका की हार होगी क्योकि बदले जिव-पौलिटिकस मे तेल/गैस पैदा करने वाले देश (मिडिल ईस्ट) इस मे अमेरिका का साथ नही दे गें।
#नोट: नीचे मेरा अप्रील 2021 का एक साल पूराना पोस्ट है, जब भारत मे कुऑ के मेढक हिन्दी पत्रकार यूक्रेन या ज़ेलेंसकी का नाम नही जानते हों गे मगर आज सब मेढक बूद्धजिवी और पत्रकार टीवी पर यूक्रेन की लडाई लड रहे हैं। यह सोवियत संध के टूटने की आखरी निर्णायक लडाई है फिर दुनिया सौ साल के लिए बदल जाये गी।
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Some of the comments on the post
Mohammed Seemab Zaman इस लडाई मे कोई मुस्लिम देश चाहे वह एशिया का हो या अफ्रिका का वह बाईडेन का साथ नही दे गा। जो मूल्क इस लडाई मे अमेरिका का साथ दे गा वह अंतोगत्वा बहुत पछताये गा क्योकि इस लडाई के जीत-हार का फैसला तेल और गैस उत्पादक देशो के हाथ मे है। वह सब ओबामा के बाईडेन से #खार खाये बैठे हैं और यही वक्त है बाईडेन या अमेरिका को सबक सिखाने का क्योकि इस बदली दुनिया मे चीन अगले दस साल मे अमेरिका से बडा महाशक्ति बन कर सामने आये गा।
Azad Hashmi अगर पॉसिबल हो तो उस पोस्ट का लिंक कमेंट बॉक्स में डालने का कष्ट करें..अमेरिका में राजनाथ सिंह गये है इस पर भी आपकी पोस्ट का इंतज़ार रहेगा ,, आज अरब न्यूज़ पर आर्टिकल पढ़ा है जिसमें अमेरिका के विदेश मंत्री ने भारत मे बढ़ते अल्पसंख्यक नरसंहार पर कुछ सवाल उठाये है।
- Mohammed Seemab Zaman देखये यह न्यूज हम देखा है कि अल्पसंख्यक पर सवाल उठाये है, मगर हम कहते हैं कुछ दिन सबर किजये यह सब मेढक रास्त पर आये गें। कभी देखा था पिछले आठ साल मे किसी बहुसंख्यक को सोशल मिडिया पर रामनवमी के दंगा पर इतना लिखते। इस बार सब लिख रहे है मगर उर्दु नाम चुप है, वह सही है।
Islam Hussain जबरदस्त असल में हिन्दी मीडिया के लोग न तो अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति समझते हैं और न उनमें इतनी सलाहियत है कि वो समझ सकें,
- Mohammed Seemab Zaman, Islam Hussain साहेब, हिन्दी मीडिया तो पिछले तीस-चालीस साल मे “छोटी सोंच” के साथ पैदा हुआ तो यह क्या जानने गया अन्तराष्ट्रीय स्थिति। दूसरे उन की सलाहियत ही नही थी जो दुनिया के पौलिटिकस को समझे यही हुआ हमारे विदेश मंत्रालय के साथ उन की भी सलाहियत नही थी जो समझ पाते दुनिया कैस बदल रही है।
- Islam Hussain, Mohammed Seemab Zaman जी सही.
Rafi Ansari लेकिन अब बारी है साउथ एशिया की लेकि इसमें भी सबसे हैरत की बात ये होगी कि उसके मेन खिलाड़ी अफ़ग़ानिस्तान चीन होंगे नाकि पाकिस्तान भारत जबकि नेपाल भूटान श्रीलंका म्यांमार बांग्लादेश पहले से ही अनाधिकारिक चाइनीज़ टेरोटेरी बने हुए हैं
- Anish AkhtarRafi Ansari साहब पाकिस्तान तो मुख्य खिलाड़ी होगा आप रिजीम चेंज होने से स्टैब्लिशमेंट पर कोई फर्क नही पड़ेगा कप्तान राजनीति को बदल गया है और जल्दी ही उसके वापस आने के अमकांन है.
- Rafi Ansari, Anish Akhtar बावजूद इसके दावे के साथ कह सकता हूँ चीन रूस लॉबी में अफ़ग़ानिस्तान पाकिस्तान भारत से ज़्यादा अहमियत वाला सहयोगी है.
Kamil Khan इस जंग में मैं देख रहा हूं के मुस्लिम देश और खासकर मिडल ईस्ट सेंट्रल एशिया के देश पुतिन की सब से बड़ी ताकत हैं.
Lalit Mohan ये बात सच है कि यूक्रेन कई दशकों तक ओसमानिया सल्तनत का हिस्सा रहा है।उसकी राजधानी को ओसमान वंशजों के kyiv शब्द से ही जाना जाता है।समरकंद के बाद अगर कोई शिक्षा का विश्वगुरु बन पाया तो वे यूक्रेन ही था।अफसोस रहेगा कि..अब अगर यूक्रेन उठ भी खड़ा हो तो भी उसके शिक्षा के केन्द्र की तरह उभर पाना संभव नहीं लगता।
- Mohammed Seemab Zaman, Lalit Mohan साहेब किताबों मे लिखा है Kyiv शब्द #कैफयत का बदला नाम है, यह हकीमों का शहर था और दूर दूर से लोग एलाज कराने आते थे। अब छोटा नाम कैव हो गया। सही लिखा यह मूल्क समरकंद और बोखारा के बाद दूसरा बडा शिक्षा का केन्द्र रहा था, जिस को रूस ने भी कायम रखा।हम को तो लगता है कि यह आखिर मे रूस से compromise करे गा क्योकि यूरोप बहुत दिन तक इस को financial support नही कर पाये गा। यह अब दिवालिया हो रहा है।
Parmod Pahwa युकराइन सोवीयत संघ के वक्त मे भी खुद को यूरोप से जोड़कर देखता था हालाँकि तब काफी हद तक यहाँ की डेमोग्राफी बदल दी गई थी और रूसियों को बसाया गया था।पुतिन मंडली को शायद अब इस युद्ध को लम्बा खींचने मे अपना फायदा नज़र आने लगा है क्योकि रूस का जितना नुकसान युद्ध और बंदिशो की वजह से हुआ उससे ज्यादा फायदा तेल के भाव में तेजी से हो गया,दूसरा सबसे बड़ा फायदा डॉलर ख़त्म करने का है और अपना निज़ाम लाने का है, मगर हमारी हालत कल के ब्लिकन के बयान के बाद से पतली है।
- Mohammed Seemab Zaman ब्लिंकन ने लिखा हुआ प्रेस कांफरेंस मे पढा है, यह ख़तरनाक बात इस वजह कर ज़ेयादा हो गया। दूसरे एलहाम ऊमर ने बोल दिया दो दिन पहले इस का मतलब अब ब्लिंकन को समझ मे आ गया कि डॉलर ख़त्म होने वाला है।हम को भी लगता है पुटिन इस को लम्बा खैंचे गा क्योकि रूस को रोज $1 billion से ज्यादा तेल और गैस का दाम मिल रहा है मगर यूक्रेन की हालत खराब हो गई। वह यूरोप से हर महीना 1-1.5 billion पैसा माँगने लगा। लगता है बहुत जल्द यह पुटिन से सुलह करे गा और अमेरिका को बेईज्जत कर दे गा।
Anish Akhtar बहुत खूब..बिल्कुल आप सही कह रहे है कि युद्ध से पूर्व भारतिय मीडिया जेल्सकि का नाम भी नही जानता था मुझे अच्छे से याद है जेल्सकि तुर्की जाकर एर्डोगन से बचाने की गुहार लगाई थी और ड्रोन खरीदने गया था.
Ranjan Dixit Aashish Sir हिंदुस्तान में नफरत कब खत्म होगी यह तो बढ़ती जा रही है।
- Mohammed Seemab Zaman एक पुश्त बरबाद होना है फिर ख़त्म हो गा। देख रहे हैं न आठ साल मे दुनिया किस तेज़ी से बदली मगर यह सौ साल की सोंच वही 1965-70 वाले रामनवमी के जलूस को दंगा जलूस बना कर विशवगुरू का सपना देख रहे हैं। हम को बचपन मे याद है उस वक्त भी एसे ही जलूस निकाल कर दंगा करते थे। सबर किजये सह ख़त्म हो गा।