Post of 30 May 2024
जनता पार्टी अध्यक्ष नवनीत चतुर्वेदी साहेब ने आज एक पोस्ट किया जिस मे उनेहोने लिखा है कि “यह एक कटु सत्य है कि आरक्षण अब नासूर है।सवर्ण वोटर्स एक तरफ़ आतंकित रहता है फ़र्ज़ी SC/ST मुक़दमे से और ऊपर से कोढ़ में खाज विपक्षी दल कांग्रेस का ओबीसी दलित प्रेम, सवर्ण वोटर्स दूर जा रहे है। हालाँकि भाजपा के साथ जाना उनकी मजबूरी है”
“सवर्ण (शर्मा जी और वर्मा जी) जो सबसे बड़ा इंफ्ल्यूएंसर होता है।” मेरा कहना है कि उस की इसी ताक़त ने उस को गुमराह कर दिया और इन्दिरा गाँधी के खिलाफ 1975-76 का जयप्रकाश आंदोलन कर आज 50 साल मे उस ने अपने को और देश को बर्बाद कर दिया।यही इंफ्ल्यूएंसर अपने को दलित और ओबीसी के आतंक से बचाने के लिए भाजपा में पनाह लिया मगर वर्तमान भाजपा ने भी उन को उदासीन कर दिया।
जयप्रकाश आंदोलन के बाद उत्तर भारत के हर मुहल्ला और गली में हर जाति का नया नया नेता पैदा हो गया और वह इन्हीं सवर्ण को गाली बक कर और आरक्षण का नारा लगा कर अपनी पहचान बना लिया मगर सवर्ण मंदिर-मस्जिद का मुद्दा उठा कर अपनी पहचान बनाने में लगे रहे।
आज़ादी के 75 साल बाद पंडित नेहरू ऐसा पढ़ा लिखा और दुनिया देखा ब्राह्मण नेता भारत में कोई दूसरा पैदा नहीं हुआ क्योंकि सवर्ण जयप्रकाश आंदोलन के बाद धिरे धिरे इन दलित और ओबीसी नेताओं के आतंक से दूर विदेश पढ़ने गये तो वहीं बस गये। जो दोयम दर्जा का सवर्ण बचे वह संघ मे जाकर अपनी आत्मा को तसकीन देने लगे कि जब संघ की सरकार बने गी तो फिर “मेरा इंफ्ल्यूएंसर वाला समय आये गा”
सवर्णो को यह ज्ञान नही रहा है कि दुनिया में कोई क़ौम कभी भी घर्म के नाम पर “एक नहीं हुई।” एक हो जाती अगर तो आज क्रिसचन यूरोप या मिडिल ईस्ट में छोटे बड़े दर्जनों देश नहीं होते।
मेरा कहना है कि 1876/1923 के डेढ़ सौ साल बाद इस बदली दुनिया मे भारत के मुक़ाम को फिर हासिल करना है तो सवर्ण को भारत का भूगोल और इतिहास याद कर अपनी सोंच को बदलना होगा। ग़ैर-सवर्ण में वह सोंच या एक्सपोज़र नहीं है कि वह इस बदली दुनिया को समझ सकें और भारत के भविष्य की चिंता करें क्योंकि वह आरक्षण के नासूर को ही अपनी पहचान समझते हैं।
#नोट: सवर्णों को अपनी “मस्जिद-मंदिर” के सांप्रदायिक सोंच को “तीन-तलाक़” देना होगा। भारत में पिछले दशकों में जो हुआ उस सब को भूलना होगा।इस बदलते वैश्विक परिप्रेक्ष्य (Changing International Order) मे भारत निर्माण में सब को एक जुट हो कर काम करना होगा वरना 21वी शताब्दी में भारत अपनी पहचान खो दे गा।
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Some Comments on the Post
Mohammed Seemab Zaman हम को आज का नवनीत चतुर्वेदी साहेब का पोस्ट बहुत अच्छा लगा। उस पोस्ट पर लोग “सुझाव” दें ताकि 50 साल से चल रही राजनीति का अनत हो और भारत का भविष्य उज्ज्वल हो।
दुनिया बहुत तेज़ी से बदल रही है और जल्द कुछ वर्षों में हम लोग बदली दुनिया देखे गें जो Multipolar World होगा।
Adv Sayyed Abbas Haider, Mohammed Seemab Zaman नवनीत जी का पोस्ट भी पढ़ा और उस पर आपकी कमेन्ट वास्ते पोस्ट भी पढ़ी।नवनीत जी ने सही सिम्पल भारतीय मंदबुद्धि वोटर और धूर्त अनपढ़ जाहिल नेताओ की राजनीति का जो चित्रण किया क़ाबिल ए तारीफ है।जहां वोटर को सब से ज्यादा खुद का आत्मविश्लेषण करने की सख्त जरूरत, वर्ना भारत महान ऐसा ही रहेगा जैसा खटारा टूटे फूटे ट्रक के पीछे लगे महानता के बखान होते हैं।
चीन जो इसी वक्त पर आजाद हुआ था वर्ल्ड का आर्थिक किंग बन गया ये विश्व गुरु का नारा लगाते 2 गटर गुरु बन गए
बाकी आप जो पोस्ट करना चाहते हैं करनी चाइये.
Md Umar Ashraf भारत में EWS को लागू करवाने के लिए हमारे नेता जनाब आशुतोष कुमार ने बहुत जद्दोजहद की, प्रदर्शन किया, पुलिस की लाठी खाई, जेल तक गए। और आख़िर कामयाबी मिली।
आज इस आरक्षण से अगर किसी एक समुदाय को सबसे अधिक फ़ायदा हो रहा है, तो वो है सिर्फ़ और सिर्फ़ मुसलमान। इसलिए मुसलमानों को इस तरह के मूवमेंट में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना चाहिए, EWS को 10% बढ़ा कर 25% की माँग करनी चाहिए।
लेकिन आपको जानके हैरत होगी के EWS आरक्षण की माँग सबसे पहले मुस्लिम नेताओं ने ही की थी, जिसमे से दो तो बिहार के ही थे। सबसे पहले 1978 में किशनगंज से सांसद हलीमुद्दीन अहमद ने इसके लिए आवाज़ उठाई, फिर 80 और 90 की दहाई में किशनगंज के ही सांसद सैयद शहाबउद्दीन ने। इन्होंने इसके लिए प्राइवेट बिल लाया।
फिर इस बात की ताईद 1997 में सुल्तान सलाहउद्दीन ओवैसी ने भी की, ये सारे लोग प्राइवेट बिल लेकर संसद भवन में खड़े हो जाते थे। उस वक़्त तो उनकी बात नहीं मानी गई, पर आज कामयाबी मिल गई।
वैसे इसमें राम नगीना मिश्रा साहब के जद्दोजहद को भी नहीं भूलना चाहिए, जो 6 बार के सांसद थे, और कांग्रेस में होते हुए भी EWS के लिए 1981, 1985, और 1988 में प्राइवेट बिल लेकर आए।
– अब ठीक इसी तरह SC आरक्षण से महरूम मुसलमान को भी फ़ायदा दिलाने के लिए #Article341 में संशोधन (amendment) के लिए मज़बूती से आवाज़ उठाने की ज़रूरत है।
Jitendra Narayan पोस्ट से सीधा लगता है कि आप भारत में सामाजिक न्याय और सत्ता एवं संसाधनों में विविधता के विरोधी हैं…साथ ही शाहबानो मामले में मुस्लिमों के रुख से ध्यान हटाना चाहते हैं जिसके कारण राजीव गांधी ने मुस्लिम के तुष्टिकरण के लिए कोर्ट के फ़ैसले को बदला और फिर हिन्दुओं के तुष्टिकरण के लिए बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाया…जिसके बाद मंदिर आन्दोलन शुरू हुआ…
साथ ही बाबरी मस्जिद में राम लला की मूर्ति भी जे पी आन्दोलन से वर्षों पहले उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत के समय ही फ़ैज़ाबाद के दक्षिण भारतीय ब्राह्मण कलेक्टर के कार्यकाल में रखा गया था…
मंडल कमीशन की सिफ़ारिशें तो 1990 में लागू हुईं…
इसलिए ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर सही विश्लेषण करिए और सही दोषियों की पहचान करिए वरना समस्या कभी दूर नहीं होगी…
- Md Umar Ashraf पहले राजीव गांधी ने ताला खुलवाया, जब मुस्लिम ने विरोध किया तब राजीव ने शाह बानो वाले मुद्दे को हवा दिया। न जाने आप लोग उल्टा क्यों बोलते हैं? क्यों ?
Navneet Chaturvedi Changing international order तभी सफल होगा जब भारत जैसे बड़े देश में सत्ता यदि वर्ल्ड एलीट क्लास या डीप स्टेट के मन मुताबिक़ किसी प्यादे की हुई!!
डीप स्टेट और ग्लोबल एलीट जब अपना मनपसंद प्यादा चुनेंगे तो उस प्यादे को गद्दी तक बिठाने के लिए उनको धर्म और जाति दोनों का सहारा लेना ही पड़ेगा।
जातिविहीन राजनीति के बारे में सोचना तक असंभव है फ़िलहाल।
आप जो कहना चाह रहे है वो एक आइडियल आदर्श स्थिति है जिसका होना असंभव है।
- Mohammed Seemab Zaman, Navneet Chaturvedi साहेब, हम इस बात से राज़ी नही हैं कि वर्ल्ड एलीट क्लास भारत मे या कही भी प्यादे पैदा करते हैं। मेरा कहना है कि घर के लोग, कथित बुद्धिजीवी प्यादे बनाते हैं जिस मे दुनिया वाले चुनते हैं।कभी सोंचा था रूस यूक्रेन मे जाये गा या प्रतिरोधी ताकत मार-काट शुरू कर दे गें और जो दुनिया 10-15 साल मे बदलती वह 4-5 साल मे बदल जाये गी।
भारत मे बदलाव आये गा और बहुत अच्छा होगा।
Saurabh Prasad मुसलमान को कानूनन आरक्षण मिल रहा है ओबीसी में और ईडब्ल्यूएस में भी। नियत सही नहीं है सिलेक्शन करने वालों का तो मुसलमान को छांट देते हैं ये एक अलग मुद्दा है। लेकिन भाजपा आर एस एस सावरकर गोलवलकर के राजनीतिक विचारधारा पर चलती है जिसके अनुसार मुसलमान को दोयम दर्जे का नागरिक बनाना है, उनका मताधिकार छीनना है, उनसे बेगारी करवाना है इत्यादि इत्यादि।
उसी आर एस एस के एजेंट नवनीत चतुर्वेदी की बात आपको सही लग रही है क्योंकि वो ओबीसी एससी एसटी के हकों के खिलाफ है। बहुत चिंताजनक बात है सर।
मंडल साहब ने माइनोरिटी इंस्टीट्यूशन के खिलाफ लिखा तो उनके हजारों समर्थक उनके खिलाफ हो गए।
किसी भी बहुजनवादी को मुसलमान आरक्षण से तकलीफ नहीं है। लेकिन लगभग हर सवर्ण को ओबीसी एससी एसटी के आरक्षण से तकलीफ है।
जब उनके अपने धर्मावलंबी के हितों के खिलाफ हैं वो मुसलमान का फरिश्ता बनेंगे क्या वो??
गांधी मुसलमानों को गुंडा कहता था और बहुत से सोशल मीडिया के सेलेब्रिटी मुसलमान गांधी को मसीहा मानते हैं।लोकतंत्र में मुसलमान नेतृत्व भी बहुजनों को लेकर ही पनप सकता है। हां अगर फिर मुस्लिम का राजतंत्र वाला काल आ जाए तो सवर्ण जरूर दरबारी करेंगे लेकिन अगर मुसलमान ये समझ रहा है की ऐसे ऐसे संघी स्लीपर सेल के दो चार पोस्ट से संघ मुसलमान का भला करने लगेगा या मुसलमान का कोई भला हो जायेगा तो ये मूर्खता है।
ऐसे एजेंट का पोस्ट शेयर करके आप अपने सैकड़ों हजारों बहुजन समर्थकों का समर्थन खो देंगे।
- Mohammed Seemab Zaman, Saurabh Prasad साहेब, हम किसी के आरक्षण के न पक्ष में हैं और न विरोध में है। 75 साल से आरक्षण मिल रहा है, आबादी बढ़ रही है मगर नौकरी खत्म हो गई।पहले विकास के लिए लड़िये ताकि नौकरी पैदा हो तब आरक्षण मानगई। सवर्ण लोगों ने privatisation कर के सरकारी नौकरी को लापता कर दिया और इस सरकार ने public sector को ख़त्म कर नौकरी लापता कर, फिर आरक्षण का क्या फ़ायदा।
बैकवर्ड में कोई नेता या पत्रकार नज़र आता है जो दुनिया की बात करता हो? मायावती को उत्तर प्रदेश से बाहर कभी कहीं देखता है? राम बिलास पासवान कहॉ मरे? वह भी तो संघ मे लाढी पटकते मरे जैसे प्रनव मुखर्जी मरे। किस किस को रोये गा।
Murtaza Khan चतुर्वेदी जी का पोस्ट ध्यान खींचता है और बहुत कुछ सोचने को मजबूर करता है। फिर भी किसी संघी के विचारों पर सतर्क भी रहना है। इस पर सीमाब साहब आपका लेख अद्वितीय और विचारणीय है।
अभी कुछ महीने पहले देश के जाने माने पत्रकार सुधीश पचौरी साहब का एक लेख “मंडल एक से मंडल दो ” ने भी इसी तरह का ध्यान खींचा था। मंडल एक जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री वी पी सिंह ने लागू किया था जिसे कांग्रेस ने ठंडे बस्ते में डाल रखा था। मंडल दो मतलब जातीय जनगणना का आलाप। जिस मंडल एक से विश्वनाथ प्रताप सिंह ने देश का सर्वमान्य नेता बनने का ख़्वाब देखा वही उनके लिए नासूर बन गया और उनका राजनीतिक कैरियर ख़त्म हो गया लेकिन मंडल एक ने आर्थिक रूप से मज़बूत जिन पिछड़ी जातियों को सशक्त बनाया वही जातियाँ आगे चलकर हिंदुत्व की सबसे बड़ी झंडाबरदार बन गयीं। कुछ हद तक उत्तर प्रदेश और बिहार में केवल यादव एक अपवाद हो सकते हैं वो भी इसलिए कि इन्हीं की जाति में इनके नेता पैदा हो गये जिनकी राजनीतिक महातवाकांक्षा थी और मुसलमानों के एक मुस्त वोट ने इन्हें सत्ता का स्वाद चखा दिया। अन्यथा बीजेपी का सबसे बड़ा वोटर और supporter यही पिछड़ी जातियाँ हैं (अन्य प्रदेशों में यादव भी) जो मंडल की मलाई खा रही हैं। सवर्ण तो बेचारा झूठे बदनाम है। सवर्ण की फ़ितरत हमेशा सत्ता के साथ जाने की रही है और फिर सत्ता में कोई भी हो। इस फ़ितरत के बावजूद भी वो सवर्ण ही है जो हमेशा सत्ता के अत्याचार और अन्याय के खिलाफ़ बढ़चढ़कर हिस्सा लेते रहे हैं वो चाहे 1857 की जंग हो जिसमें उच्च कोटि के ब्राह्मणों ने मुसलमानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेजों को पानी पिला दिया था लेकिन देश का दुर्भाग्य था कि पहली स्वतंत्रता संग्राम में कामयाबी नहीं मिली। अब आज का ही दौर देख लीजिये कि पिछले दस साल की मोदी या बीजेपी की तानाशाही के विरुद्ध सोशल मीडिया में सबसे ज्यादा सक्रिय पत्रकार ब्राह्मण और क्षत्रिय ही हैं। और जो सवर्ण आज बीजेपी के साथ हैं यदि ख़ुदा न खास्ता कल बीजेपी का ग्राफ गिरने लगे तो सबसे पहले भगदड़ स्वर्णो में ही मचेगी। यानी सवर्ण फ्लोटिंग है, किसी के स्थायी सपोर्टर नहीं हैं।
लेकिन इस पढ़े लिखे समाज यानी सवर्णो को अपने कुछ पूर्वाग्रह छोड़ने होंगे जैसे मुसलमानों के प्रति इतिहास को लेकर उत्पन्न हीन-भावना जो उनके मन कुंठा जमाये बैठी है इस कुंठा से उन्हें निजात पाना होगा।