سُنا ہے میں نے غلامی سے اُمّتوں کی نجات

خودی کی پرورش و لزّتِ نمود میں ہے

*9/11 के बाद दुनिया की जियोपौलिटिक्स बदलती रही। रूस पहली बार 2016 मे OPEC+ का सदस्य बना और दुनिया मे $100 billion का तेल-गैस बेचने लगा जो पहले $20 billion का बेचता था।

*फ़ॉल ऑफ काबुल (2021) के बाद रूस ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पहली बार 2022 मे यूक्रेन पर हमला कर यूरोप को 70 साल बाद चुनौती दे दिया। 2023 मे फलस्तीनी प्रतिरोधी ताक़तों ने यूरोप को यूक्रेन मे हारता देख कर इसराइल मे अक्टूबर 2023 से मार-काट शुरू कर दिया।

*इसराइल-प्रतिरोधी ताक़तों के 6 महीना की लड़ाई में अमेरिकी असफलता को देख कर ईरान ने पहली बार 14 अप्रैल 2024 को अमेरिकी (इसराइल) ठिकानों पर ड्रोन और मिज़ाइल से हमला कर मिडिल ईस्ट में अमेरिकी सुरक्षा संतुलन के paradigm को हमेशा के लिए बदल दिया।

*14 अप्रैल 2024 को अमेरिकी (इसराइल) ठिकानों पर ईरानी हमला मिडिल ईस्ट में केवल एक और घटना नहीं है; मिडिल ईस्ट मे अमेरिकी विदेश नीति की यह सब से बड़ी हार है।इस ऐतिहासिक हमला ने ट्रम्प के “Abraham Accord” और जोसेफ़ बाईडेन के India-Middle East-Europe Economic Corridor (IMEC) जो अमेरिका की अरब जगत मे आर्थिक तथा सुरक्षा देने का मुख्य उद्देश्य था उस का जनाज़ा निकाल दिया।

*दो दिन पहले तुर्की के अरदोगान द्वारा इराक़-तुर्की-यूरोप के $17 billion के रोड और रेल गलियारे की योजना ने अमेरिका के इराक़ मे 20 साल के मार-काट के विदेश नीति का अंत कर दिया।

*अब अमेरिका को वैश्विक मंच पर अपने सबसे मजबूत प्रतिद्वंद्वी चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करना बहुत कठिन होगा क्योंकि चीन वैश्विक स्तर पर अपने आर्थिक और सैन्य शक्ति को मजबूत करने के लिए अरब जगत में अपनी नई पहचान ईरान-सऊदी अरब में दोस्ती करा कर बना चूका है।

*सऊदी अरब चीन में नया रिफ़ाइनरी बना रहा है और दो रिफ़ाइनरी मे शेयर ख़रीद कर पार्टनर बन गया है ताकि चीन उस के तेल का एक प्रमुख बाज़ार 25-30 साल तक बना रहे।

*जैसे-जैसे अमेरिका संयुक्त राष्ट्र में फलस्तीन के खिलाफ विटो कर मार-काट को बढ़ा रहा है, चीन चुपचाप अपने वैश्विक प्रभाव को बढ़ाता जा रहा है।चीन के आर्थिक और वैश्विक प्रभाव ने भारत में 1958 में आये शरणार्थी दुलाई लामा के तिब्बत को चीन का अटूट अंग बना दिया और अब चीन भारत मे अरूनाचल को तिब्बत का हिस्सा कह कर विस्तारवादी हो गया। 2020-21 मे हांगकांग हमेशा के लिए चीन का अटूट अंग बन गया और अब ताइवान की बारी है।

#नोट: अमेरिका-चीन के आर्थिक संबंध इतने जटिल हैं कि अमेरिका अगले बीस (20) साल चीन के आर्थिक चंगुल में फँसा रहे गा। दक्षिण चीन सागर और हिंद-प्रशांत जैसे अमेरिकी रणनीतिक फेल कर गई और अब अमेरिका खुद को एक ऐसे चौराहे पर ला खड़ा किया है जहॉ उस को अपनी इसराइल निति को बिना तीन तलाक़ दिये एशिया और अफ़्रीका मे उस की किसी भी वैश्विक रणनीतिक को अरब जगत, रूस और चीन सफल नहीं होने दे गा।

सूना है मैं ने ग़ोलामी से उम्मतों की नजात

ख़ुदी की परवरिश व लिज़्ज़त नूमूद में है (इक़बाल)*