Post of 8 November 2022

विदेशमंत्री जयशंकर साहेब दो दिन के यात्रा पर बहुत सारे लोगो को लेकर रूस गये हैं।वहॉ आज बैठक मे रूस के विदेशमंत्री लेवरोव को कहा कि “हम लोगो का विशेषकर नियमित तथा समय परीक्षित रिश्ता रहा है, उसी पृष्ठभूमि मे हम आगे बात करना चाहते हैं।”

हम ने हमेशा लिखा कि “संघ पिछले 40 साल से confused है कि देश या सामाज को किस दिशा मे ले जाया जाये?” खबर को पढ कर यकीन हो गया 1974 मे जयप्रकाश आंदोलन से शुरू संघ का सत्ता मे आकर भारत को “विश्वगुरू” बनाने का सपना आज संघ की सरकार का टूट गया और फिर वही “नेहरू की विदेश नीति” पर संघ लौट कर आ गया।

बराक ओबामा ने 2014 मे संघ की सरकार स्थापित किया और गणतंत्र दिवस पर भारत आये और वह दिन और आज का जयशंकर साहेब का मॉस्को मे कहना कि दुनिया बदल गई है और हम time tested relationship को पुन: स्थापित करना चाहते हैं, सौ साल की सोंच के लिए यह एक बहुत अफ़सोसनाक दिन है। कहॉ गया “नमस्ते ट्र्म्प” और “अब की बार ट्रम्प सरकार” का नारा?

मेरा कहना है कि रूस हम से अब पहले की तरह रिश्ता नही बना पाये गा क्योकि मिडिल ईस्ट, तुर्की और सेन्ट्रल एशिया तथा चीन अब रूस के लिये ज्यादा महत्वपूर्ण देश हो गये हैं क्योकि रूस का बार्डर इन देशो से मिलता है।

एक छोटा सा उदाहरण देते हैं, COP27 मे यूरोपीयन यूनियन (EU) ने कल क़ज़ाखस्तान को Hydrogen और Lithium बैट्री बनाने की technology तथा फैक्ट्री लगाने का पैसा दिया है ताकि वह यूरोप तथा दुनिया मे जिस को चाहे बैट्री बेचे।

संघ के “जियोपौलिटिकल गेम” का खेल आज खत्म हो गया।नीचे एक ग्राफ देखये संघीतकार बुद्धिजीवियों का अमेरीका के तुष्टीकरण करने के बावजूद अमेरिका 2018-2022 तक भारत से ज्यादा कम्बोडिया, वायटनाम या इंडोनेशिया से सामान आयात कर रहा है।

“जय अल हिन्द, जय जगत”