Post of 17 September 2023
भारत में G-20 शिखर सम्मेलन के अवसर पर भारत सरकार ने 200 से ज़्यादा राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय सभा किया और हर विषय पर चर्चा करवाया जहॉ यौनाचारिक संबंधों पर सभा और चर्चा न करवा कर अच्छा किया।
जब 9 सितंबर को शिखर सम्मेलन शुरू हुआ तो भारत की संस्कृति की झांकी कोणार्क मंदिर जो 13वी शताब्दी में बना उस के कामोत्तेजक प्रतिकों (Erotic Symbols) वाले द्वार पर मेहमानों का स्वागत किया गया जो अनावश्यक था। यह घटना वैचारिक द्वैधता को दर्शाती है क्योंकि सम्मेलन का प्रसंग “एक दुनिया, एक फैमिली, एक भविष्य” था।
G-20 के दौरान भारत मे “ग्लोबल साउथ” शब्द बहुत तेज़ी से एक नई पहचान और नए नारे के रूप में सूना गया जबकि यह शब्द पश्चिमी देशों द्वारा पिछली शताब्दी मे उभरती अर्थव्यवस्थाओं और गरीब देशों के संदर्भ में गढ़ा गया था।
कोरोनोवायरस महामारी के दौरान पश्चिमी मीडिया ने विकसित पश्चिमी देशों और ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन आदि जैसे तीसरी दुनिया के देशों के बीच अंतर करने के लिए “ग्लोबल साउथ” का शब्द प्रयोग किया (कृपया NewStatesman, London का 24-30 अप्रैल 2020 का अंक नीचे देखें).
हाल में, ग्लोबल साउथ शब्द का उपयोग विकासशील देशों, मिडिल पावर और अंतरराष्ट्रीय मामलों के बारे में अपनी समझ व्यक्त करने वाले देशों के लिए “कोड वर्ड” के रूप में किया गया यानि जिसमें “मेड इन द नॉर्थ” (यूएसए, कनाडा और यूरोप) नहीं है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि अभी थर्ड वर्ल्ड द्वारा “ग्लोबल साउथ” शब्द UNO, IMF, World Bank, WTO आदि अंतरराष्ट्रीय संस्था जो पश्चिमी देशों की हित की बात करता है, उस के प्रति असंतोष की भावना की वजह कर इस्तेमाल किया जा रहा है।
भारत ने G-20 सम्मेलन के अवसर पर “ग्लोबल साउथ” के लीडर बनने की कोशिश मे जनवरी 2023 में, “Voice of Global South” (वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ) के रूप में एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका के 120 देशों का एक आभासी (Virtual) शिखर सम्मेलन आयोजित किया, मगर हासिल कुछ नहीं हुआ।
इस वर्ष दिल्ली सम्मेलन मे अफ्रीकन यूनियन (AU) को G-20 का सदस्य बनाया गया। इस मौके पर दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति रामापोज़ा के प्रवक्ता विंसेंट मैग्वेन्या ने कहा कि “आइए हम इस धारणा को खारिज कर दें कि कोई एक देश ग्लोबल साउथ के नेता के रूप में उभरने जा रहा है।”
#नोट: संक्षेप में, “ग्लोबल साउथ” लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के देशो के एक समूह का नाम है। भारत अंतरराष्ट्रीय मामलों में अपना प्रभाव बनाने के लिए अपने हित में “ग्लोबल साउथ” शब्द का उपयोग करने की कोशिश कर रहा है लेकिन मिडिल ईस्ट, तुर्की, सेंट्रल एशिया, साऊथ अफ़्रीका या चीन जैसी शक्तियों भारत को इस का नेतृत्व करने मे सफल नहीं होने दें गीं।